HEALTH EDUCATION part 1 - Effects of Heat or Cold (शरीर पर गर्मी या ठंड के प्रभाव)

अगर बहुत लम्बे समय तक शरीर पर अत्यधिक गर्मी या ठण्ड का प्रभाव बना रहता है तो शरीर पर इलेक्ट्रोलाइट्स से सम्बन्धी गड़बड़ी हो सकती है। 

तापघात  (heat stroke) 

इसे होने की संभावना ऐसे लोगो में ज़्यादा रहती है जो अपने आपको अधिक तापक्रम सहने के लिए अनुकूल नहीं बना पाते है। यह लम्बे सामय तक व्ययाम करने या पसीने के वाष्पीकरण को रोकने वाले ज़्यादा मोटे कपडे पहनने की वजह से भी हो सकता है।  इससे रोगी को बेचैनी या भ्रम भी होता है। 
तथा रोगी को कभी-कभी ऐठन की भी शिकायत होती है। व त्वचा गर्म और शुष्क हो जाता है। 

 मुँह का तापक्रम 41͒ c  (106 ͒ f ) से ज़्यादा हो जाता है। व नाड़ी की गति तेज और आयतन कम होने लगता है।  
ऐसे समय में रोगी को ठंडा रखना बहुत ज़रूरी होता है। रोगी के खुले शरीर पर पानी का छिड़काव किया जाता है और पंखे की हवा भी दिया जाता है।पसीने के कारण हुई लवण की नुकसान को पूरा करने के लिए इन्ट्रावीनस की विधि से स्लाइन द्रव दिया जाता है।  

कम तापक्रम (Hypothermia)

 हम आज कल की ज़िन्दगी में गंभीर रूप से शारीरिक तापक्रम को सामान्य कारण समझने की भूल करते है। विशेष रूप से ठण्ड के मौसम में वृद्ध व्यतियो में सामान्य नैदानिक थर्मामीटर में 35 ͒ c  (95 ͒ f ) से कम का तापमान रिकार्ड नहीं किया जा सकता। 
इसलिए आजकल मार्किट में विशेष  रूप से आशंकित व् मालशायिक तापक्रम रिकॉर्ड करने के लिए कम -रीडिंग वाले थर्मामीटर भी उपलभ्ध है। वृद्ध व्यक्ति में विशेष जो अकेले रहते है,कई करणो से तापक्रम पैदा कर देती है।  
जैसे:- 

1 . कमरों में गर्मी का ज़्यादा होना,अपर्याप्त अंतग्रहण, अपर्याप्त कपडे और ठन्डे मौसम। 

2.  व्यक्ति को (फ्रैक्चर) या आघात की वजह से अगतिशीलता, में जिसमे सहायता नहीं बुलाई जा सकती हो। 

3.  यदि व्यक्ति दवाई या अधिक शराब का सेवन करता है और बिना किसी चादर या कम्बल ओढ़े ठन्डे कमरे में हो, तो ऐसे में बेहोश रोगी के शरीर से गर्मी बहुत ज़िल्दी ख़तम होने लगती है। 

4 .  मिक्सिडिमा - ठन्डे व खुले में रहने जैसी अवस्था में त्वचा सफ़ेद ,और हाथ पैर ठंडे हो जाते है और शरीर में कपकपी होने लगती है। इसके बाद मास पेशियों में कड़कपन होती है श्वसन क्रिया में कमी व धीमी रक्तचाप होनी लगती है इस स्थिति में मलाशयिक तापक्रम 30 ͒  c (86 ͒ f) से काम हो जाती है 
और अधिक तापक्रम कम होने के कारण रोगी बेहोश होकर बेशुद हो जाता है। 

रोकथाम (Prevention):


गरीबी व ख़राब आवासीय स्थिति और अधिक गर्मी ,ये सारी बाते आसानी से दूर तो नहीं होती है पर स्थानीय अधिकारी और सामाजिक कार्यकरता कुछ हद तक ऐसे लोगो की सहायता ज़रूर कर सकते है। नियमित  रूप से भेट कर के उन्हें गर्म बनाये रखने के ज़रूरी सलाह देना आवश्यक होता है। 

उपचार (Treatment):


ऐसे समय में रोगी को तुरंत गर्म करने का प्रयत्न कभी भी नहीं करना चाहिए।  क्योकि इससे त्वचा की रक्तवाहिका अधिक फैलने लगती है। इस प्रकार सामान्य रक्तपरिसंचरण से द्रव की और अधिक कमी होने लगती है। रोगी को किसी भी तरह से गर्म रखने की ज़रूरत होती है उन्हें गर्म कपडे दे या किसी कम्बल ढककर या गर्म कमरे में रखना उचित होता है। तथा रोगी की बार-बार नियमित रूप से तापक्रम रिकॉर्ड करना चाहिए जो बहुत ही ज़रूरी होता है। चुकी निर्जलीकरण बहुधा होता है इसलिए 5 प्रतिशत गर्म डेक्स्ट्रोज धीमी ड्रिप दुवरा इंट्रावीनस तरीके से दिया जाता है। 

 विधुत (Electricity):


विधुतीय आघात के ज़्यादा मामले में घरो में या रोज पर काम आने वाले इलेक्ट्रिक उपकरण के दौरान या अप्रयाप्त अर्थिंग (Earthing) के कारण शरीर में करंट के लगने से त्वचा भी जल सकती है और ज़्यादा करंट लगने से हृदय अवरोध भी हो सकता है। 

रेडिएँशन (विकिरण)  (Radiation) :

प्राकृतिक रेडिएँसन बहुत ही कम मात्रा में हमारे वातावरण में पाए जाते है। जो की प्राकर्तिक कुछ सूर्य और तारो से निकलने वाले काँस्मिक किरणों से होती है और कुछ ज़मीन में होने वाले रेडियोस्क्क्रीय पदाथो की वजह से भी होता है। मानव निर्मित रेडिएँशन न्यूक्लिअर ऊर्जा के पदार्थो और एक्स-रे  के इस्तेमाल रेडियो-चिकित्सा पर काम में  भी होता है। 
 
 बहुत ज़्यादा रेडिएँशन से शरीर के विभिन्न ऊतकों में ठीक नहीं होने वाली क्षति पैदा होती है. इससे विशेष कर : त्वचा बाल और जननांग ज़्यादा प्रभावित होते है।  तथा कैंसर भी हो जाता है। इसीलिए जो एक्स-रे विभाग में कर्मचारी काम करते है उन्हें सख्त रूप से सुरक्षात्मिक नियमो का पालन करना अनिवार्य होता है ताकि लंबी अवधि के समय खतरे पैदा न हो सके। रोगी के शरीर में रेडिएँशन के खतरे को कम करने के लिए कुछ ज़रूरी जाँच -परीक्षण करना होता है।  

जैसे :- बैरिअम मील आदि। 

 जो बहुत लम्बे समय तक और बार-बार एक्सपोजर के लिए जाना पड़ता है। उनमे कुछ तकनीकों और नियमो का पालन करना होता है।  सभी एक्स-रे विभाग में सुरक्षत्मिक मानव के उपयोग एक नियमित प्रक्रिया है।     

कुछ असाध्य वृद्धियो (Malignant Growths) को रोकने के लिए रेडियोथेरेपी व रेडियोचिकत्सा का इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर किसी रोगी के शरीर में बढ़ते हुवे ट्यूमर की कोशिकाएं गहरी एक्स-रे प्रभाव में विशेष रूप से संवेदनशील हप्ता है। जबकि उसमे आसपास की जगह पर अप्रभावित ही रहता है। 

बहुत सारे कई प्रकार की बीमारियों के उपचार में सामान्य तत्वों के रेडियोसक्रिय का इस्तेमाल किया जाता है।  उदाहरण के तौर पर जब रेडियोसक्रिय आयोडीन मुँह द्वारा दिया जाता है तब यह थाइराँइड ग्रंथि द्वारा दी जाती है,यह रेडियोसक्रिय आयोडीन ज़्यादा मात्रा में थाइराईड कोशिकाओं को रोक देते है। 
इसलिए थाइराइड ग्रंथि की बीमारी में इसका उपचार किया जा सकता है।  
 

शरीर पर गर्मी का प्रभाव 

1 .   पित्त हमारे शरीर पर पाचन का कार्य करता है और जो ये पित्त तत्व है वह तप व गर्मी को बढ़ाता है। 
  पित्त का काम हमारे भोजन को पचना ही नहीं बल्कि हमारे शरीर को तपना भी होता है पर कभी-कभी ये शरीर को इतना तपाता है की हमे प्रॉब्लम हो जाती है। 
  और वह शरीर को एक लिमिट में ही तपाये इसलिए इसकी एक मात्रा तय की गई है। कभी - कभी ये पित्त बहुत बाढ जाता हैं। तो यह बढ़ा हुवा पित्त को हम 

  क्यैसे  जाने इसके लिए हम आपको कुछ लक्षण बता रहे है। तो हमारा जो मल और मूत्र है उसमे ज़्यादा पीला पन बढ़ जाता है। जब आपको लगे की मूत्र में ज़्यादा पीला पन है तो आप समझ सकते है की पित्त की मात्रा बढ़ी हुई है। ऐसा भी हो सकता है की आपने पानी कम पिया हो तो भी आपको समझ जाना चाहिए की आपके शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ी हुई है। 

 2 . जब आपको त्वचा और आँखे पिली दिखाई पड़ने लगती है तो आप समझ जाइये की पित्त की मात्रा बहुत ज़्यादा बढ़ चुकी है,
अथवा आपको थोड़ी थोड़ी देर में भूख और प्यास लगने लगती है आपको बार बार प्यास लगेगी और आपके होठ सूखने लगेंगे। 

3 . पित्त की मात्रा बढ़ने से आपके शरीर के पैरो या तलवो,पेट,हाथो में या शरीर के कई जगह पर जलन महसूस होती है। एसे में आपको रात में नींद नहीं आएगी और शरीर पर पित्त बढ़ने से आपको थकन भी महसूस होगी तो भी आपको समझ जाना चाहिए की आपके शरीर पर पित्त की मात्रा बढ़ चुकी है। 

4 . आपके शरीर से बदबू भी आ सकती है ये इसलिए होता है क्युकी पित्त के बढ़ने से टॉक्सीन भी पसीने के साथ बहार आता है। 

5 . मुँह का कड़वा पन भी होने लहता है क्युकी आपका पित्त बढ़ा हुआ है.
 

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